एक दफ़ा वो याद है तुमको? बिन बत्ती जब साइकल का चालान हुआ था| हमने कैसे भूके प्यासे बेचरों सी एक्टिंग की थी|
हवलदार ने उल्टा एक अट्ठन्नी देकर भेज दिया था| एक चव्वन्नि मेरी थी| वो भिजवा दो|
सावन के कुछ भीगे भीगे दिन रखे हैं| और मेरे एक खत में लिपटी रात पड़ी है| वो रात बुझा दो|
और भी कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है| वो भिजवा दो|
पतझड़ में कुछ पत्तों के गिरने की आहट कानों में एक बार पहनकर लौट आई थी|
पतझड़ की वो शाख अभी तक काँप रही है| वो भिजवा दो|
एक सौ सोलह चाँद की रातें| एक तुम्हारे काँधे का तिल| गीली मेहन्दी की खुशबू| झूठ मूठ के शिकवे कुछ|
झूठ मूठ के वादे भी सब याद करा दूं| सब भिजवा दो| मेरा वो सामान लौटा दो|
एक इजाज़त दे दो बस……..